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वो बदल गए।

वो साथ चलते थे, समझदार थे, 
वो काफी अच्छे थे, वफादार थे, 
उगना तो वो सूरज सा चाहते थे, 
दिन होते ही, तारों सा ढल गये, 
वो बदल गए। 

बेचारे नहीं थे, बेहद खास थे, 
दूर नहीं थे, बहुत पास थे, 
दोस्ती वो हक़ से निभाना चाहते थे, 
फिर एक दिन जो दोस्तों के घर गए, 
वो बदल गए। 

इंसान थे, समझ थोड़े ही आते थे, 
कुत्तों की तरह काट थोड़े ही खाते थे, 
व्यवहार कुशल थे, बहती हवा से थे, 
फ़टे हुए नोट थे, धोखे से चल गये, 
वो बदल गए। 

लहरों की तरह मुझसे टकराकर,
पागल कर दिया उन्होंने मुस्कुराकर,
जान चली जाए, उनको देख लूँ तो, 
वो ज़माने और थे, वो जो अब गुज़र गये, 

वो बदल गए।

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परिभाषा वाला प्रेम।

संभवतया मैं तुम्हारे जीवन में आने वाला प्रथम और आखिरी व्यक्ति होउगां जिससे किसी भी विषय पर कितने की बकैती करा लो.. पर बोल नही पाता हूं जब सामने आती हो तुम.. पर मैं नहीं सोचता कि किसी दीवार के सहारे बैठकर हम गाये प्रेम के गीत ..नहीं चाहिये मुझे तुम्हारे अधरों पर मेरे अधरों का प्रतिबिंब ...मुझे नहीं पंसद देह का गणित.. बस मेरी कल्पना ये है, कि किसी घाट या हिमालय की तराई में बैठ कर के हम दोनों चर्चा करें देश की..समाज की..धर्म की.. बाटें अपना मूल..मै अपनी कहूं.. और फिर टकटकी लगाए किसी बच्चे की मानिंद बस सुनता रहूं कि 'कैसे होतें है 'वामपंथी'...  और हां मैं हमेशा तुमसे ऐसी ही बात करता रहूंगा.. खुद तुच्छ हो सकता हूं...हो सकता है मुझे न आता हो कहना..मुझे तुम्हारी खुली जुल्फें सवारनी न आती हों पर जब मैं आखिरी सांस के बाद तुम्हे जब ईश्वर के सुपुर्द करूं तब वही पवित्रता बनी रहे जैसे तुम्हे मुझे सौंपते वक्त थी... तुमसे बस इत्तू सा इश्क है 'जाना' जानती हो क्यों? सुनना चाहोगी? क्योंकि प्रेम की पवित्रता प्रेम को पवित्र रखने में ही है.. 😊
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